दिल्ली। मेडिकल कॉलेजों में प्रत्येक डॉक्टर को बराबरी का मौका देने के लिए सरकार ने नियमों में बदलाव किया है। इसके तहत अब मेडिकल कॉलेजों में तीन साल बाद सभी विभाग के मुखिया बदले जाएंगे। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने निमयों में बदलाव को चिकित्सा शिक्षा में पारदर्शिता लाने की कवायद बताया है। एनएमसी ने पीजी मेडिकल शिक्षा में बदलाव के लिए स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा विनियम संशोधन 2025 (पीजीएमईआर) का मसौदा जारी किया है। इसके तहत अधिनियम 7.1 में सभी विभाग प्रमुखों का कार्यकाल तीन वर्ष तय किया है।
विभागाध्यक्ष का यह पद प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के बीच वरिष्ठता के आधार पर तीन-तीन वर्षों के लिए रोटेट किया जाएगा। NMC के मुताबिक, इस मसौदे पर एक अधिसूचना जारी की गई है जिस पर दो जुलाई तक सुझाव मांगे गए हैं। दरअसल मेडिकल कॉलेजों में विभागाध्यक्षों का रोटेशन बहस का विषय बना हुआ है और वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय कर्नाटक आयुर्विज्ञान संस्थान की ओर से क्रियान्वित रोटेशन नीति से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा है। मामले में इस बात पर सवाल उठाया गया है कि क्या विभागाध्यक्ष का पद प्रशासनिक है, जो एनएमसी विनियमन 3.10 के तहत वरिष्ठता आधारित नियुक्तियों द्वारा शासित है।
सुप्रीम आदेश पर एमएनसी ने तैयार किया मसौदा
चिकित्सा क्षेत्र में एक वर्ग का मानना है कि तीन साल में विभाग का मुखिया बदलने से विचारों की विविधता, नए नवाचारों और अधिक सहयोगात्मक कार्य संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा जबकि दूसरे वर्ग का कहना है कि रोटेशनल प्रमुखता से विभाग में निरंतरता और दीर्घकालिक दूरदर्शिता का अभाव हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने एनएमसी से विभागाध्यक्ष की नियुक्ति के मामले को स्पष्ट करने को कहा है जिसके बाद एनएमसी ने नियमों में नया संशोधन जारी किया है।
पीजी चिकित्सा छात्रों को मिलेंगे नए अवसर
एनएमसी के नए नियमों के तहत विविध पृष्ठभूमि के चिकित्सा छात्र भी अब सर्जिकल सुपर स्पेशलिटी के लिए पात्र होंगे। अगर सामान्य भाषा में कहें तो जल्द ही ईएनटी और ट्रॉमा सर्जन भी न्यूरो और प्लास्टिक सर्जन बन सकेंगे। नए नियमों में एमसीएच (न्यूरो सर्जरी), एमसीएच (प्लास्टिक और पुनर्निर्माण सर्जरी) और एमसीएच (संवहनी सर्जरी) कोर्स में आवेदन के लिए एमएस/डीएनबी (जनरल सर्जरी, ईएनटी, ट्रामा सर्जरी) सभी स्वीकार होंगे। एनएमसी का कहना है कि फीडर ब्रांच में बदलाव के जरिए आगामी समय में सुपर-स्पेशलिटी कोर्स के लिए आवेदकों की संख्या बढ़ेगी, जिससे विशेष क्षेत्रों में विशेषज्ञों की उपलब्धता में सुधार की संभावना है।