धू-धू कर जलती रही मानवता, लोग बनाते रहे वीडियो: रिपोर्ट विस्तार से

दिल्ली। एक ओर जहां एक पिता अपने साथ दो मासूम जिंदगियों को बचाने के लिए फ्लैट की बालकनी से छलांग लगाने की तैयारी कर रहा था। इस उम्मीद में कि नीचे खड़ी भीड़ शायद उसे बचा ले लेकिन उसे नहीं पता था कि ”वीडियो प्रेमी” गद्दों का इंतजाम करने के बजाय मोबाइल कैमरा संभाले खड़े रहे। मौके पर जमा भीड़ अगर प्रयास करती तो तीनों की जान बच सकती थी। पर क्या कह सकते हैं लोगों की संवेदनाएं मर गईं हैं। मानवता से बड़ी बात इन लोगों के लिए वायरल और व्यूज कमाना है। बगल की सोसाइटी से मौके पर पहुंची सुनीता कुमारी ने बताया कि जिस वक्त उनकी निगाह पड़ी, उस वक्त बालकनी में दो बच्चों के साथ यश खड़े थे। कहीं से कोई मदद नहीं मिल रही थी। आग बालकनी पर पहुंचने के बाद वह कूद पड़े। इस दौरान नीचे कोई मदद करने नहीं गया। इसकी जगह लोग वीडियो बनाते रहे। सोशल मीडिया पर कुछ व्यूज पाने के चक्कर में वहां मौजूद मोबाइल से इस मंजर को कैद करते लोगों ने मानवता को शर्मसार कर दिया। वक्त रहते अगर लोगों ने इमारत के नीचे साथ मिलकर कूद रहे लोगों के लिए चादर या तिरपाल पकड़कर खड़े हो जाते, तो शायद तीनों की जान बच जाती।

धू-धू कर जलती उम्मीदें, आपदा प्रबंधन पर उठे सवाल
द्वारका की आग से आपदा प्रबंधन पर सवाल उठ रहे हैं। बगैर पूरे इंतजाम के मौके पर देरी से पहुंचे दमकल विभाग को लेकर लोगों में नाराजगी साफ नजर आई। दमकल कर्मी जो उपकरण लेकर पहुंचे उससे नौंवी मंजिल तक पानी नहीं पहुंच रहा था। लोगों को तो यहां तक कहना है कि दमकल कर्मियों को खुद नहीं समझ में आया कि आग कैसे बुझेगी। बाद में दमकल कर्मी दूसरे टावर पर गए और किसी तरह खिड़की से पाइप लटकाटकर पानी फेंका। लोगों का कहना है कि जब राजधानी दिल्ली में आग जैसी आपदा से निपटने के इंतजाम इतने लचर हैं तो दूसरी जगहों का क्या कहा जा सकता है।

न आपात निकास, न उपकरण, सिर्फ वादे
इस त्रासदी में सोसाइटी का प्रबंधन भी पीछे नहीं रहा। आरोप है कि आग लगते ही लिफ्ट बंद कर दी गई। सुरक्षा के नाम पर फ्लोर दर फ्लोर दौड़ लगाते निवासियों ने जब बाहर निकलने का रास्ता खोजा, तो पाया कि आपातकालीन निकास केवल प्लानिंग के कागजों तक सीमित था। अग्निशमन यंत्र तो थे, मगर दिखावे के लिए। निवासियों ने बताया कि मेंटेनेंस के नाम पर हर महीने 3600 रुपये लिए जाते हैं, लेकिन व्यवस्था चौपट है। एक शख्स ने बताया कि आग लगने के बाद मेंटीनेंस को जब फोन किया गया तो उन लोगों ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई।

3.5 करोड़ का फ्लैट, 13 मिनट में हुआ राख
यश के भतीजे योगेश ने बताया कि 2023 के मई महीने में तीन करोड़ 50 लाख में चार कमरों का पैंटहाउस खरीदा गया था। पूरा परिवार बहुत खुश था लेकिन आज सब खत्म हो गया। उनके चाचा और छोटे-छोटे बच्चे अब इस दुनिया में नहीं रहे। अब आगे क्या होगा, नहीं पता। पैंटहाउस जलने के साथ उसमे बसने वाली खुशियां भी स्वाहा हो गईं। सोसाइटी के रख-रखाव का सिस्टम अब भी मेंटेनेंस चार्ज में ही बंद है। इन लोगों के पास आग बुझाने तक के इंतजाम होना चाहिए था। आपातकालीन निकासी भी काम नहीं कर सकी।

नौवीं मंजिल से गिरे बच्चों को दी गई सीपीआर
अमित कुमार ने बताया कि तीन सेकंड में तीनों धड़ाम से जमीन पर गिरे। मौके पर लोगों की भीड़ लग गई। परिस्थितियों को देखते हुए अमित ने फौरन बच्चों की जान बचाने के लिए उन्हें सीपीआर देने की कोशिश की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अमित बताते हैं कि मुझे इमारत के ऊपर से कुछ कांच के टुकड़े जमीन पर गिरने की आवाज सुनाई दी, जिसके बाद मैंने अपार्टमेंट के गेट पर मौजूद लोगों को आवाज दी। आसमान की ओर देखने पर चारों ओर धुएं का गुबार दिखाई देने लगा। अमित का कहना है कि घटना घटित होने के बाद करीब एक घंटे बाद दमकल की गाड़ियां मौके पर पहुंची थीं।

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